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एक मुद्दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो / गौतम राजरिशी
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अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो
''{त्रैमासिक सरस्वती-सुमन, जनवरी-मार्च2010
/ त्रैमासिक अर्बाब्र-क़लम, अक्टूबर-दिसम्बर 2010
}''
</poem>
Gautam rajrishi
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