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चीरती-सी जाती है अब ये घर की ख़ामोशी / गौतम राजरिशी
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08:55, 27 फ़रवरी 2011
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बस गयी
रगों
है रग-रग
में
दीवारो
बामो
-दर की ख़ामोशी
चीरती-सी जाती है अब ये घर की ख़ामोशी
पड़ गई है आदत अब साथ तेरे चलने की
बिन तेरे कटे कैसे ये सफ़र की ख़ामोशी
{त्रैमासिक लफ़्ज़, दिसम्बर-फरवरी 2011}
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Gautam rajrishi
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