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दूर क्षितिज पर सूरज चमका,सुब्ह खड़ी है आने को / गौतम राजरिशी
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09:01, 27 फ़रवरी 2011
अपने हाथों की रेखायें कर ले तू अपने वश में
तेरी रूठी किस्मत ’गौतम’,आये कौन मनाने को
{त्रैमासिक लफ़्ज़, सितम्बर-नवम्बर 2009}
</poem>
Gautam rajrishi
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