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धरा सजती मुहब्बत से, गगन सजता मुहब्बत से
मुहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग से ही खुश्बू, फूल, सूरज, चाँद होते हैं
करें परवाह क्या वो मौसमों के रुख़ बदलने की
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
वो कोई और होंगे अपनी क़िस्मत पे जो रोते हैं
 
{द्विमासिक सुख़नवर, जनवरी-फरवरी 2010}
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