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सिहर उठता रह-रह संसार।
::पुलक से खिल-खिल उठते प्राण!
::बनो कवि! फूलों की मुस्कार।मुस्कान।
सरित सम पर देती है ताल,
विरह से व्याकुल, तप्त शरीर,
नयन से झरता झर-जर झर नीर,
जलन से झुलस रहे सब गात,
जुड़ी है आँखों की बरसात,
::सिसक-संयुक्त अति करुण उसाँस।
::बनो कवि! सावन-भादो माश।मास।
न उपवन का वह विभव-विलास,