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तेरी मुक्ति / प्रतिभा सक्सेना

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मेरे स्वर तब तक न थमेंगे ,जब तक जीवन बीत न जाये
तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन मेरी वाणी गीत न गाये !
और नहीं तो बँधे रहो ,
मेरे स्वर के बंधन चंचल हैं !
बरबस मन में उतर चलेंगे ,
मेरे अंतर्गीत विकल हैं !
तुम न रहो तो शायद फिर ,
सारा संसार विजन बन जाये !
तुम न सुनो तो हृत्तंत्री की
तान न फिर शायद जग पाये
 
तुम न सुनो तो संभव है ,
मेरी वाणी फिर गीत न गाये !
तुम न लखो तो शायद यह अस्तित्व ,
जगत में ही घुल जाये !
 
चलती रहें उजाड़ हवायें ,
जीवन की आशायें बिखरा ,
छायेगी अनजान बने से
सपनों पर बेसुध सी तंद्रा !
 
अब के बाद न जाने कितने
दिन गुमसुम से ढल जायेंगे
जाने कितने आज सदा को ,
इसी तरह बन कल जायेंगे !
 
दृष्टि उठेगी महाशून्य में ,
सम्मुख कोई चित्र न होगा !
अब के बाद अकेलेपन का
शायद कोई मित्र न होगा !
दूर रहो तो एक मिलन की
चाह जगाते रहना प्रिय तुम ,!
मेरे स्वर की दुनियां में ,
मृदु राग जगाते रहना प्रिय तुम !
यों ही रहना -कहना है जब तक ये साँसें रूठ न जायें
तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन मेरी वाणी गीत न गाये !
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