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उलझे हुये हमारे मन हैं/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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08:07, 1 मार्च 2011
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उलझे हुये हमारे मन हैं
'''
उलझे हुये हमारे मन है, उलझे हैं जज्बात,
पग पग उलझ गये हैं कितने, अब अपने हालात।
Dr. ashok shukla
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