767 bytes added,
00:55, 3 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
कल का तुम्हारा
इतना खुश चेहरा
भूल नहीं पाऊँगा
जो भीतर-ही-भीतर
स्वीकार करता प्यार को
उत्फुल्ल हो उठा था
और जिस पर
दुख की आड़ी-तिरछी
तमाम लकीरों के बीच
रात्रि का एक
सुदूर उदित
तारा लिखा था ।
</poem>