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<poem>फागुन से मेरे भी रिश्ते निकलेंगे हां, सूखा हूं लेकिन पत्ते निकलेंगे
रिश्तेदारों से उम्मीदें क्यों की थीं फ़जरी आमों में तो रेशे निकलेंगे
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