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शिव स्तुति/ तुलसीदास

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देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..
 
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बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बडो दिन दये बिनु, बेद-बड़ाई भानी।1।
निज घरकी बरबात बिलाकहु, हौ तुम परम सयानी।
 
सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी।।
 
जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।
 
तिन रंकनकौ नाक सँवारत, हौं आयो नकबानी।।
दुख-दीनता दुखी इनके दुख, जाचकता अकुलानी।
 
यह अधिकार सौंपिये औरहिं, भाीख भली मैं जानी।।
 
प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत, सुति बिधिकी बर बानी।।
 
तुलसी मुदित महेस मनहिं मन, जगतु-मातु मुसकानी।।
 
</poem>
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