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|रचनाकार=मासूम गाज़ियाबादी
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खून इन्सां का जो सड़कों पे बहाना चाहे
वो अदावत के चिरागों को जलाना चाहे

घर के हालात से वाबस्ता है बच्चा शायद
जो खिलौनों की जगह बोझ उठाना चाहे

कोशिशें हमको उठाने की हुई हैं ऐसे
जैसे पलकों से कोई अश्क उठाना चाहे

अहले फुटपाथ ही दागों की तरह उभरेंगे
तू अगर हिंद की तस्वीर बनाना चाहे

पहले सर रखता है काद्मों पे गुनाहगारों के
दौरे- हाजिर में हुकूमत को जो पाना चाहे

हौसला देखिये बारिश में संगरेज़ों की
शीशागार दिल सि कोई चीज़ बनाना चाहे

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