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आप भी आइए / जावेद अख़्तर

No change in size, 10:38, 14 जून 2007
दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बॉंटिए बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाऍं तमन्‍नाएँ भी,
ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
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