1,674 bytes added,
16:50, 10 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= श्रद्धा जैन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जैसे होती थी किसी दौर में, हैवानों में
बेयकीनी है वही आज के इंसानों में
जल्द उकताते हैं हर चीज़ से, हर मंजिल से
ये परिंदों की सी आदत भी है दीवानों में
उम्र भर सच के सिवा कुछ न कहेंगे, कह कर
नाम लिखवा लिया अब हमने भी नादानों में
जिस्म दुनिया में भी जन्नत के मज़े लेता रहा
रूह इक उम्र भटकती रही वीरानों में
उसकी मेहमान नवाजी की अदाएं देखीं
हम भी सकुचाए से बैठे रहे बेगानों में
नाम, सूरत तो हैं पानी पे लिखी तहरीरें
मेरी पहचान रहेगी मेरे अफसानों में
झूठ का ज़हर समाअत से उतर जाएगा
बूंद सच्चाई की उतरे तो मेरे कानों में
जो भी होना है वो निश्चित है, अटल है ‘श्रद्धा’
क्यूँ न कश्ती को उतारे कभी तूफानों में
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader