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(225)
 
भरोसो और आइहै उर ताके।
 
कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।
 
कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।
 
कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।
 
हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।
 
उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।
 
मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।
 
तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।
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