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हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम।
मनहुँ पुरट संपुट लसत लसत तुलसी ललित ललाम।7।
 
सगुल ध्यान रूचि सरस नहिं निर्गुन मन में दूरि।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि।8।
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