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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 1

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हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम।
मनहुँ पुरट संपुट लसत लसत तुलसी ललित ललाम।7।
 
सगुल ध्यान रूचि सरस नहिं निर्गुन मन में दूरि।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि।8।
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ। तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ।9।
नाम राम केा अंक है सब साधन हैं सून।
अंक गएँ कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून।10।
 
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