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अपनी क़िस्मत पे नाज़ करते, ग़ुरूर होता/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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14:03, 13 मार्च 2011
हम-तुम मिल ही जाते किसी मोड़ पर इक रोज़
जो इश्क़ में वस्लतो-क़ुर्ब<
/
ref>मिलन और समीपता</ref> का दस्तूर होता
हैं आलम में रंग, नये-पुराने, यादों के
विनय प्रजापति
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