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02:58, 14 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
|संग्रह=
}}
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<poem>
तुमने हँसी की होगी
दिन भर की की उकताहट
उड़ा देने को ही
उधेड़कर धागे
झटके से तोड़ दिए होंगें
और मैंने समझा
तार-तार मेरी चादर ने
तुम्हें उकसाया है
</poem>