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{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
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तुमने हँसी की होगी
दिन भर की की उकताहट
उड़ा देने को ही
उधेड़कर धागे
झटके से तोड़ दिए होंगें
और मैंने समझा
तार-तार मेरी चादर ने
तुम्हें उकसाया है

</poem>