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इस शहर-ए-खराबी में / हबीब जालिब
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15:49, 14 मार्च 2011
|रचनाकार = हबीब जालिब
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{{KKCatGhazal}}
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इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे
</poem>
अनिल जनविजय
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