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--- --- प्रेषक - संजीव द्विवेदी ------<br>
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कवि - गुलाम मुर्तुजा राही
 
छिप के कारोबार करना चाहता है
घर को वो बाज़ार करना चाहता है।
 
आसमानों के तले रहता है लेकिन
बोझ से इंकार करना चाहता है ।
 
चाहता है वो कि दरिया सूख जाये
रेत का व्यौपार करना चाहता है ।
 
खींचता रहा है कागज पर लकीरें
जाने क्या तैयार करना चाहता है ।
 
पीठ दिखलाने का मतलब है कि दुश्मन
घूम कर इक वार करना चाहता है ।
 
दूर की कौडी उसे लानी है शायद
सरहदों को पार करना चाहता है ।
 
 
प्रेषक - संजीव द्विवेदी -
 
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