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आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी / पद्माकर
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13:55, 15 मार्च 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर
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{{KKAnthologyHoli}}
<poem>
आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी,
बोरी गई रंगन सुगंधन झकोरै है ।
Pratishtha
KKSahayogi,
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