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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 8

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ख्वैहौं न पठावनी कै ह्वैहौं न हँसाइ कै।9।
///// प्रभुरूख पाइ कै, बोलाइ बालक बालक धरनिहि,  बंदि कै चरन चहूँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।  छोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजूको,  धोइ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।।  तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर,  बरषैं सुमन, जय-जय कहैं टेरि -टेरि।।  बिबिध सनेह -सानी बानी असयानी सुनि,  हँसैं राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि।10। 
</poem>
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