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नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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06:41, 20 मार्च 2011
उठी सँभाल बाल,मुख-लट,पट,दीप बुझा,हँस बोली
रही यह एक ठठोली।
'''सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की यह कविता 'जागरण' ,पाक्षिक,काशी,22मार्च 1932 को 'होली' शीर्षक से छपी थी ।'''
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अनिल जनविजय
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