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उठी सँभाल बाल,मुख-लट,पट,दीप बुझा,हँस बोली
रही यह एक ठठोली।
 
'''सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की यह कविता 'जागरण' ,पाक्षिक,काशी,22मार्च 1932 को 'होली' शीर्षक से छपी थी ।'''
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