<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !एक देश और मरे हुए लोग<br> '''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत विमलेश त्रिपाठी "निराला"]]</td>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !एक मरा हुआ आदमी घर मेंजागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,एक सड़क परदीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली- मली मुख-चुम्बन-रोली ।एक बेतहाशा॔ भागता किसी चीज़ की तलाश में
प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-मरा हुआ लालकिले से घोषणा करताकि हम आज़ाद हैंकुछ मरे हुए लोग तालियाँ पीटते कली-सी काँटे की तोली ।कुछ साथ मिलकर मनाते जश्न
मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-तो तबजब एक मरा हुआ संसद में पहुँचा बनी रति की छवि भोली ।और एक दूसरे मरे हुए पर एक ने जूते से किया हमला
बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,एक मरे हुए आदमी ने कई मरे हुए लोगों परउठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोलीएक कविता लिखी रही यह और एक ठिठोली ।मरे हुए ने उसे पुरस्कार दिया एक देश है जहाँ मरे हुए लोगों की मरे हुए लोगों पर हुकूमतजहाँ हर रोज़ होती हज़ार से कई गुना अधिक मौतें अरे कोई मुझे उस देश से निकालोकोई तो मुझे मरने से बचा लो</pre>
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