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त्रासदी है ! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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06:17, 22 मार्च 2011
बिम्ब को पीता हुआ
लगता यहाँ हर आइना है
सभ्यता के मोड़ पर
सहमी हुई मन की नदी है !
क़ैद पँखुड़ियाँ
इसी अफ़सोस में ही अनमनी हैं
फूल की तक़दीर में बस
डाल से टूटन बदी है !
दृष्टियों का अजनबीपन
हो रहा हर रोज़ गहरा
खोखलेपन के वज़न से
पीठ आदम की लदी है !
त्रासदी है !
</poem>
अनिल जनविजय
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