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यह भी अजब तमाशा है / शतदल
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16:41, 25 मार्च 2011
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यह भी अजब तमाशा है ।
जिसको देखो प्यासा है ।
प्यार तुम्हारा क्या कहने
पानी-धुला बताशा है ।
फूलों और बारुदों की
अपनी-अपनी भाषा है ।
मुखिया मेरी बस्ती का
बना गोगियापाशा है ।
</poem>
अनिल जनविजय
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