728 bytes added,
10:33, 27 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुम्भनदास
}}
[[Category:पद]]
<poeM>सीतल सदन में सीतल भोजन भयौ,
सीतल बातन करत आई सब सखियाँ ।
छीर के गुलाब-नीर, पीरे-पीरे पानन बीरी,
आरोगौ नाथ ! सीरी होत छतियाँ ॥
जल गुलाब घोर लाईं अरगजा-चंदन,
मन अभिलाष यह अंग लपटावनौ ।
कुंभनदास प्रभु गोवरधन-धर,
कीजै सुख सनेह, मैं बीजना ढुरावनौ ॥
</poem>