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:ग़ुबार ए आह से देकर जिला आइना ए दिल को
:हर इक सूरत को मैंने ख़ूब देखा गौर से देखा
:नज़र आई न वो सूरत मुझे जिसकी तमन्ना थी :बहुत ढूँढा किया गुलशन में वीराने में बस्ती में :मुन्नवर शमअ ए मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी :मगर चारों तरफ़ था घुप अँधेरा मेरी हस्ती में :दिल ए मजबूर को मजरूह ए उल्फ़त कर दिया किसने :मेरे अहसास की गहराईयों में है चुभन ग़म की :मिटा कर जिस्म मेरी रूह को अपना लिया किसने :जवानी बन गई आमाजगाह सदमात ए पैहम की :हिजाबात ए नज़र का सिलसिला तोड़ और आ भी जा:मुझे इक बार अपना जलवा ए रंगीं दिखा भी जा