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कविता जम गई है-सर्दी का / राकेश खंडेलवाल
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|रचनाकार = राकेश खंडेलवाल
}}
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नहीं छोड़ती स्याही चौखट कलम की<br>
नहीं स्वर उमड़ता गले की गली में<br>
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