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00:26, 3 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
गर्मी की उमस भरी दोपहरी।
सलाखों से तीर की तरह भीतर पैठती धूप !
मेरे हाथों में एक आईना है !
भीगे बालों वाली एक लड़की
हाथ में भरी हुई बाल्टी लिए
सीढ़ियाँ चढ़ रही है ।
एक गीत है सम्पूर्ण परिवेश को घेरता ।
उसके आगे पीछे एक आहट है ।
परिचय - आत्मीयता और वायदों की आहट !
जीवित होती है चिट्ठियों की परम्परा !
होती है शंका की बीमारी ।
रिश्ता बदलता है ।
[रिश्ता बदलने से मन नहीं बदलता]
चिट्ठियों की परम्परा मर जाती है !
भीगे बालॊं वाली लड़की जूड़ा बाँध लेती है !
गीत अब भी तैरता है !
आहटें आज भी आती हैं !
सिर्फ आईना टूट गया है !
</poem>