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01:02, 3 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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एक शाम : रूमाल में रखकर सूरज निचोड़ती !
एक अन्तर : दर्पण के भीतर-बाहर !
एक सृष्टि : कमल के अन्तस में विकसित-
स्खलन का प्रकारान्तर से सम्पादन !
एक अनुभूति : छूने गयी बाँसुरी; सूँध आई साँस !
बबूल की छाल पहने-मुँह में कमल-नाल लिए
चीख़ती पोपले मुँहवाली एक संस्कृति !
(1964)
</poem>