711 bytes added,
11:28, 6 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
|संग्रह=
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
मेहर ए रोशन की आख़िरी किरणें
रक़स करती हैं काले बादल में
उन शुआओं से रंग गिरते हैं
और दोश ए हवा पे फिरते हैं
और बनाते हैं आसमाँ पे कमाँ
रंगज़ा, रंगबार ओ रंगअफ़शाँ
उस कमाँ से वो तीर आते हैं
जो नज़र की ख़लिश मिटाते हैं