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विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 3

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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 21 से 30 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 21]]|आगे=* [[पद 21 से 30 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 2]]|सारणी=* [[पद 21 से 30 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 3]]}}<poem> '''* [[पद संख्या 21 तथा 22'''से 30 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4]]  (* [[पद 21) ज्मुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न।1। ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ नतुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न।2। (22) स्ेाइअ सहित सनेेह देह भरि,कामधेनु कलि कासी।समनि सोक संताप पाप रूज, सकल-सुमंगल-रासी।1। मरजादा चहुँ ओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी। तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अविनासी।2।  अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी। गलकंबल बरूना बिभा िजनु, लूम लसति, सरिताऽसि।3। दंड पानि भैरव बिषान,तलरूचि-खलगन-भयदा-सी। लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी।4।  मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुसरि-सुख सुखमा-सी। स्वारथ परमारथ परिपूरन,पंचकोसि महिमा-सी।5।  बिस्वनाथ पालक कृपालुचित7 लालति नित गिरजा-सी। सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी।  पंचााच्छरी प्रान7 मुद माधव7 गब्य सुपंचनदा-सी। ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी।7।  चारितु चरिति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी। लहत परम पद प्य पावन, जेहि चहत प्रपंच- उदासी।8।  कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला -सी। तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी।9।<poem>से 30 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5]]
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