{{KKCatGhazal}}
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इक क़यामत मेरी हयात बनी | गरमी ए बज़्म ए कायनात बनी|
आशना ए सुकूँ थी ला इलमी
आगही फ़िक्र ए शशजहात बनी |
मौत ने जब फ़ना की दी तालीम 
वो घडी मुश्दा ए हयात बनी | 
मौसम ए बरशिगाल ख़ूब आया  
इक दुल्हन सारी कायनात बनी | 
दामन ए ज़ब्त में सुकूँ पाया 
शोर ओ शेवन से जब न बात बनी | 
फिर वही रात सुबह बनती है 
जो सहर शाम हो के रात बनी|
जब्र का सब तिलिस्म टूट गया 
जब ईरादों की कायनात बनी | 
किस ज़मीं में ग़ज़ल कही है " ज़िया "
कि बनाए से भी न बात बनी    |   </poem>