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दिल ए आदम को वहशत है ज़मीं से | हवा आई कोई ख़ुल्द ए बरीं से |जो निकली थी दिल ए अन्दोहगीं से|जली बिजली उस आह ए आतिशीं से |
हुई तैयारियाँ दार ओ रसन की
अनालहक़ की सदा आई कहीं से |
जहां से क़हक़हे उठे थे शायद
मेरे आँसू भी आए हैं वहीँ से |
चली दुनिया में रस्म ए सजदारेज़ी
कुछ उनके दर से कुछ मेरी जबीं से |
यकीं के पाँव में लग़ज़ीश न आए
बदल जाती हैं तक़दीरें यकीं से |
मुहब्बत की " ज़िया " सरशारियाँ हैं
नहीं मुझ को ग़रज़ दुनिया ओ दीं से|</poem>