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नई सुबह / ज़िया फ़तेहाबादी
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05:01, 10 अप्रैल 2011
नए आफ़ताबों को फिर जन्म देंगे
लुटरों से फिर अपना हक़ छीन लेंगे
ये ज़ुल्मत
कि
की
हैबत दिलों से मिटेगी
ज़माने को करवट बदलनी पड़ेगी
नहीं दूर अब तो नज़र आ रही है
उठो, दोस्तों वो सहर आरही है
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Ravinder Kumar Soni
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