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नौशगुफ़ता फूल तेरा मुस्कराना है बजा
बुलबुलों के गीत सुन कर झूम जाना है बजा
रँग ए जोर ए गुलिस्ताँ देखा नहीं तुने तूने हनूज़ जब्र ए दौर ए आसमाँ देखा नहीं तुने तूने हनूज़
तू अभी ना आशना है इन्क़लाब ए दहर से
तू अभी वाकिफ़ नहीं राज़ ए सराब ए दहर से
तू नसीम ए सुबह की आग़ोश का पाला हुआ
रांड रँग ओ बू के दिलनशीं साँचे में है ढाला हुआ
नाचती है तेरे ऐवान ए तसव्वुर में बहार
बज रहा है पत्तियों का दिलकश ओ रंगीं सितार
मुँह धुलाती है उरूस ए सुबह शबनम से तेरा
शीशा ए दिल पाक है आलाइश ए ग़म से तेरा
ज़ह ज़हन में तेरे नहीं है सूरत ए गुलचीं अभी तुने तूने समझे ही नहीं अन्दाज़ ए बुग़ज़ ओ कीं अभी तू है इक जाम ए शगुफ़ता चश्म ए ज़ाहिर के लिएऔर इलहाम ए मुजस्सिम क़ल्ब ए शायर के लिए
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