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15:28, 10 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
|संग्रह=
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<poem>
रात कहती थी दिल से आँसू पी |
यूँ ही उम्मीद में सहर के जी |
जगमगाए चिराग़ ज़ररों के
पड़ गई माँद शमें तारों की |
गुल ए नरगिस है महव ए आईना
वाह रे आलम ए दुरूँबीनी |
वो तो मैं ही था बारहा जिस ने
ज़िन्दा रहने को ख़ुदकुशी कर ली |
किसे अहसास था असीरी का
बन्द खिड़की अगर नहीं खुलती |
जल बुझा जो पतँगा उस की ख़बर
आग की तरह शहर में फैली |
शेअर कहते रहो " ज़िया " साहिब
ख़िदमत ए उर्दू और क्या होगी |
</poem>