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रात कहती थी दिल से आँसू पी |
यूँ ही उम्मीद में सहर के जी |
 
जगमगाए चिराग़ ज़ररों के
पड़ गई माँद शमें तारों की |
 
गुल ए नरगिस है महव ए आईना
वाह रे आलम ए दुरूँबीनी |
 
वो तो मैं ही था बारहा जिस ने
ज़िन्दा रहने को ख़ुदकुशी कर ली |
 
किसे अहसास था असीरी का
बन्द खिड़की अगर नहीं खुलती |
 
जल बुझा जो पतँगा उस की ख़बर
आग की तरह शहर में फैली |
 
शेअर कहते रहो " ज़िया " साहिब
ख़िदमत ए उर्दू और क्या होगी |
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