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वृन्द के दोहे / भाग ३

1 byte added, 13:32, 22 जून 2007
जैसे पावक पवन मिलि, बिफरै हाथ न होय ॥ 26<br><br>
फल बिचार कारज करौ, करहु नव्यर्थ न व्यर्थ अमेल । <br>
तिल ज्यौं बारू पेरिये, नाहीं निकसै तेल ॥ 27<br><br>
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