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जीने का हुनर / मोहम्मद इरशाद

10 bytes added, 14:31, 12 अप्रैल 2011
या रब मुझको ऐसा जीने का हुनर दे
जो मुझसे मिले जो इंसाँ उसे तू उसको मेरा कर दे
नफरत बसी हुई है जिन लोगों के दिल में
हर हाल में करते हैं जो शुक्र अदा तेरा
‘इरशाद’ को भी मौला उनमें शुमार तू बस ऐसा ही कर दे
</Poem>
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