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|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार
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छत बचा लेता है मेरी ,वही पाया बनकर
मुझको हर मोड़ पे मिलता है फरिश्ता बनकर

तेरी यादें कभी तनहा नहीं होने देतीं
साथ चलती हैं मेरे ,धूप में साया बनकर

तंगहाली में रही जब भी व्यवस्था घर की
मेरी माँ उसको छिपा लेती है परदा बनकर

आज के दौर के बच्चे भी कन्हैया होंगे
आप पालें तो उन्हें नंद यशोदा बनकर

घर के बच्चों से नहीं मिलिये किताबों की तरह
उनके जज्बात को पढ़िये तो खिलौना बनकर
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