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13:53, 20 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार
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वही उड़ान का का असली हुनर दिखाते हैं
तिलस्म तोड़ के आंधी का, घर जो आते हैं
कभी प्रयाग के संगम को देखिये आकर
यहाँ परिंदे भी डुबकी लगाने आते हैं
ये बात सच है कि दरिया से दोस्ती है मगर
मल्लाह डूबने वालों को ही बचाते हैं
लिबास देखके मत ढूंढिए फकीरों को
कुछ जालसाज भी चन्दन तिलक लगाते हैं
कब इनको खौफ़ रहा जाल और बहेलियों का
परिंदे बैठ के पेड़ों पे चहचहाते हैं
हम अपने घर को भी दफ़्तर बनाये बैठे हैं
परीकथाओं को बच्चों को कब सुनाते हैं
किसी गरीब के घर को मचान मत कहना
कबीले पेड़ की शाखों पे घर बनाते हैं
</poem>