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गाँव में चक्का तलाई / अजेय

400 bytes added, 04:28, 22 अप्रैल 2011
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  मेरे गाँव की गलियाँ पक्की हो गई हैं।गईं हैं.  
गुज़र गई है एक धूल उड़ाती सड़क
गाँव के ऊपर से
खेतों के बीचों बीचबड़ी-बड़ी गाड़ियाँलाद ले जाती जातीं हैं शहर की मंडी तकनकदी फसल के साथमेरे गाँव के सपनेछोटी छोटी खुशियाँ कच्ची मिट्टी की समतल धुपैली छतों से उड़ा ले गया है हेलिकॉप्टर पुरसुकून गरमाईश का एक नरम टुकड़ा उड़ा ले गया है सर्दियों की सारी चहल पहल ऊन कातती औरतें चिलम लगाते बूढ़े ‘छोलो’ की मंडलियाँ और विष-अमृत खेलते छोटे छोटे बच्चे --   मेरे गाँव के घर भी पक्के हो गए हैं रंगीन टी वी के नकली किरदारों मे जीतीबनावटी दुक्खों से कुढ़ती ज़िन्दगी उन घरों के भीतरी ‘कोज़ी’ हिस्सों मे क़ैद हो गई है किस जनम के करम हैं कि यहाँ फँस गए हैं हम ! कैसे निकल भागें पहाड़ों के उस पार ?  आए दिन फटती है खोपड़ियाँ जवान लड़कों की *कितने दिन हो गए पूरे गाँव को मैंने एक जगह एक मुद्दे पर इकट्ठा नहीं देखा
मिट्टी की छतों सेभौंचक्का , उड़ा ले भूल गया है हेलीकॉप्टरहूँ गाँव आ कर अपना मक़सद एक टुकड़ा नरम धूपशर्मसार हूँ अपने सपनों पर सर्दियों की चहल पहलमेरे सपनों से बहुत आगे निकल गया है गाँव ऊन कातती औरतें चिलम लगाते बूढ़ेबहुत ज़्यादा तरक़्क़ी हो गई है `छोलो´ मेरे गाँव की मंडलियाँगलियाँ पकी हो गई हैं. और विष-अमृत खेलते बच्चे।
टीन की तिरछी छतों से फिसल कर== ताँदी पुल रेन शेल्टर 11.10.1985 ==ज़िन्दगीसिमेंटेड मकानों के भीतर कोज़ी हिस्सों में सिमट गई हैरंगीन टी० वी० केनकली किरदारों में जीतीबनावटी दु:खों में कुढ़ती --´´कहाँ फँस गए हम!कैसे निकल भागे पहाड़ों के उस पार?´´
आए दिन फटती हैं खोपड़ियाँ जवान लड़को कीबहुत दिन हुए मैंने पूरे गाँव कोएक जगह/एक मुद्दे पर इकट्ठा नहीं देखा।गाँव आकर भूल गया हूँ अपना मकसदअपने सपनों पर शर्म आती हैमेरे सपनों से बहुत आगे निकल गया है गाँवबहुत ज्यादा तरक्की हो गई हैमेरे गाँव की गलियाँ पक्की हो गई हैं।
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