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तू / ओएनवी कुरुप

26 bytes added, 19:42, 22 अप्रैल 2011
यहाँ पहुँचते वसंत की जीभ को
तूने उखाड़ दिया और
चिडियों चिड़ियों के चोंच से
कोई आवाज़ नहीं निकलती
तू साँस लेता है हवा में
और पेयजल में
और इनमें मृत्यु का चारा टाँगता है
जिस टहनी पर बैठा हुआ है
उसी को ख़ुद काटता है
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