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कोई इस शहर में अपना नज़र आता ही नहीं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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17:50, 23 अप्रैल 2011
"आईना तूने कभी गौर से देखा ही नहीं"
मुंबई शहर की मिट्टी की है तासीर अजब
जो 'रक़ीब' आता है वो लौट के जाता ही नहीं
मिक़नातीसी
सी
है ये मुंबई की खाक 'रक़ीब'
जो यहाँ आता है वो लौट के जाता ही नहीं
</poem>
SATISH SHUKLA
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