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08:22, 26 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कृष्ण कुमार यादव
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<poem>
वे कहते हैं
यह सुविधा-शुल्क है
कोई घूस या कमीशन नहीं
आपने हमें काम दिया
तो हमारा भी
कुछ फर्ज बनता है
आपकी सेवा करने का।
अरे साहब, सिद्धान्त व आदर्शवाद छोड़ो
ये कोई भ्रष्टाचार नहीं
हर विभाग में यह चलता है
आप नहीं लोगे
तो आपके नीचे वाला लेगा
पर कोई न कोई तो लेगा ही
फिर आप क्यों नहीं?
वैसे भी स्टेटस तनख्वाह से नहीं
सुविधा-शुल्क से ही बढ़ता है
अपने पड़ोस के अधिकारियों के
घरों की तरह झाँकें
सब कुछ जुटा रखा है उन्होंने
बाजार में नित नई आती सुविधायें
उस पर से बीबी-बच्चों की मासूम निगाहें
आखिर कब तक आप इनसे बचोगे
और फिर वो मना नहीं कर पाता।
</poem>