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साँचा:KKPoemOfTheWeek

406 bytes added, 05:21, 27 अप्रैल 2011
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : एक देश और मरे हुए लोगघर से भागी हुई लड़की<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विमलेश त्रिपाठीमहेश चंद्र पुनेठा]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
एक मरा हुआ आदमी घर परीक्षा मेंएक सड़क फ़ेल हो जाने परएक बेतहाशा॔ भागता किसी चीज़ की तलाश मेंया माँ-बाप से लड़करघर से भाग जाता है लड़कादुख व्यक्त करते हैं लोग
एक मरा हुआ लालकिले से घोषणा करतालड़का कहीं कर लेता हैकि हम आज़ाद हैंदो रोटी का जुगाड़या फिर कुछ मरे हुए लोग तालियाँ पीटतेदिन घूम-फिरकरकुछ साथ मिलकर मनाते जश्नलौट आता है अपने घर
हद तो तबख़ुशियों से भर जाता है घरजब एक मरा हुआ संसद में पहुँचाजैसे लम्बे सूखे के बादऔर एक दूसरे मरे हुए पर एक ने जूते से किया हमलावर्षा की बूँदों का झरनापतझड़ के बाद बसंत का आ जाना ।
एक मरे हुए आदमी ने कई मरे हुए लोगों परसौतेली माँ के उत्पीड़न सेएक कविता लिखीयाऔर एक मरे हुए ने उसे पुरस्कार दियाशराबी बाप के आतंक से घर से भाग जाती है लड़की कभीएक देश गाँव भर में शुरू हो जाता है जहाँ मरे हुए लोगों की मरे हुए लोगों पर हुकूमतजहाँ हर रोज़ होती हज़ार से कई गुना अधिक मौतेंचर्चाओं का उफ़ान
अरे कोई मुझे उस देश से निकालोआँगन हो / गली हो / पनघट होया चाय की दुकानआ ही जाती है उसके भागने की बाततरह-तरह की आकाँक्षाएँसंबंधों की बातेंजितने मुँह उतने अफ़साने दो-चार दिन में लौट आती है लड़कीघर में बढ़ जाता है तनावकहीं कोई तो मुझे मरने से बचा लोख़ुशी नहींमर क्यों नहीं गईमर ही जातीक्यों लौट आई यह लड़की । </pre>
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