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09:33, 3 मई 2011 {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
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ये बेशुमार तन्हाईयां,
शायद मेरे ह्रिदय व मस्तिष्क की,
बंद खिड़कियां खोल दें,
और मैं कुछ ऐसा कर जाऊं,
लिख जाऊं कुछ अमर पंक्तियां,
जो संयोग के क्षणों में,
मैं न लिख पाई।
तुम्हारा विरह भी मुझे,
देता है असीम शक्ति,
पीड़ा के ऐसे ही क्षणों में तो
मैनें कई-कई सृजन किए हैं।
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