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ग़ज़ल-2 / मुकेश मानस

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इस समंदर का मुझे
साहिल नज़र आता नहीं

वीरान है कबसे शहर
कोई बशर गाता नहीं

दूर तक फैला अन्धेरा
कुछ नज़र आता नहीं

जो वक्त पीछे रह गया
वो लौट कर आता नहीं
2005

<poem>
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